पूरब का ऑक्सफोर्ड - इलाहाबाद विश्वविद्यालय, यहां जानिए आखिर क्यों कहते हैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय को पूर्व का ऑक्सफोर्ड

TCN डेस्क।

वस्तुतः इलाहाबाद विश्वविद्यालय को पूरब के ऑक्सफ़ोर्ड की संज्ञा इसके स्थापत्य में पश्चिमी तत्वों के प्रचुर समावेश के कारण दी जाती रही है, इंडो - इस्लामिक शैली में बने इस विश्वविद्यालय के भवन गॉथिक शैली से भी पर्याप्त प्रेरित हैं। विज्ञान संकाय की मीनार और सीनेट हॉल में स्थित क्लॉक टॉवर विशुद्ध पश्चिमी स्थापत्य के बेजोड़ नमूने हैं। 

लेकिन भारत में शिक्षा के प्रमुख केंद्रों में शुमार इस गौरवशाली विश्वविद्यालय ने कला, साहित्य, थिएटर, विज्ञान, राजनीति व सिविल सेवा के क्षेत्रों में अभूतपूर्व उपलब्धियों द्वारा 'पूरब के ऑक्सफ़ोर्ड' की इस संज्ञा को विद्वता के मानकों पर भी सार्थक सिद्ध किया है। 
पूर्व प्रधानमंत्री व भारतीय राजनीति के युवा तुर्क चंद्रशेखर, पूर्व प्रधानमंत्री वी. पी. सिंह, उत्तर प्रदेश के  प्रथम मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत जैसे अनेकों राजनेता इस विशाल वटवृक्ष की शाखाएँ हैं। इसके अतिरिक्त आधुनिक मीरा महादेवी वर्मा, एकांकीकार रामकुमार वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, मृणाल पांडे जैसे साहित्यिक रत्नों का सृजन भी इस विश्वविद्यालय ने किया है। 


सिर पर उम्मीदों की गठरी लिए नव प्रवेशी इन्हीं उपलब्धियों की प्रेरणा पर आँखों में न सिर्फ बड़े सपने पालते हैं बल्कि उन्हें पूरा भी करते हैं। गौरतलब है कि आईएएस-पीसीएस की फैक्ट्री कहा जाने वाला इलाहाबाद विश्वविद्यालय देश का चौथा सबसे पुराना विश्वविद्यालय है। दक्षिण एशिया का प्रमुख शैक्षणिक केंद्र होने के कारण यहाँ विदेशों से भी अनेकों छात्र हर वर्ष अध्ययन के लिए पधारते हैं। 

भले ही इसे किंचित कारणों से इंग्लैंड के उपरोक्त कॉलेज जितनी सुविधाएँ न मिलती हों परंतु शिक्षा के इस तीर्थ ने बौद्धिकता का प्रसार करने में कोई कमी नहीं छोड़ी है और अपने आदर्श वाक्य Quot Rami Tot Arbores (जितनी शाखाएँ उतने वृक्ष) की प्रासंगिकता को जीवित रखा है।

यह स्टोरी हमारे साथ काम कर रहे है, इंटर्न धीरेंद्र मौर्य ने की है।धीरेंद्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मध्यकालीन इतिहास विषय में परास्नातक कर रहे हैं।

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