पत्रकारिता: चुनौती और संभावना

राजीव मिश्रा

TCN डेस्क।  भारत में पत्रकारिता को विधायिका,  न्यायपालिका और कार्यपालिका के बाद लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में माना जाता है, हालांकि भारतीय संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.  पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ इसलिए भी माना जाता है क्योंकि जनता की आवाज को लोकतांत्रिक तरीके से अभिव्यक्त करके सरकार तक पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम है.

भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में भी पत्रकारिता का बहुत अहम योगदान था. उस समय के पत्रकारों ने स्वतंत्रता के संघर्ष को एक मिशन की तरह लिया और अपनी कलम से ही ब्रिटिश हुकुमत की खिलाफत में लग गए. उसमें पत्रकारिता का एकमात्र लक्ष्य स्वतंत्रता हासिल करना और जनता में चेतना जागृत करना रहा था. आजादी के 70 साल बाद भी भारत में पत्रकारिता का क्षेत्र उत्तरोत्तर नए अवसरों और चुनौतियों से भरा माना जाता है. जो परम्परा सन् 1780 में जेम्स अगस्टक हिक्की ने "बंगाल गजट" निकाल किया था वहीं परंपरा गणेश शंकर विद्यार्थी, रामनाथ गोयंका, प्रभाष जोशी और ऐसे कई बड़े पत्रकारों से होते हुए आज पुष्पित और पल्लवित हो रही है. वर्तमान समय की पत्रकारिता पहले की अपेक्षा बहुत सशक्त, प्रभावकारी स्वतंत्र और आसान हो गया है.

बोलने की आजादी और मीडिया की पहुंच सामाजिक सरोकारों और भलाई के लिए होने लगा है. प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ-साथ ही वेब मीडिया ने भी भारत में वह मुकाम हासिल कर लिया है जिसे कहा जा सकता है कि यह काल पत्रकारिता का स्वर्ण काल है. आजादी के बाद निश्चित रूप से इसमें बदलाव आना ही था. आज इंटरनेट और सूचना अधिकार में पत्रकारिता को बहुआयामी और अनंत बना दिया है. आज जानकारियों का अभाव नहीं है. लोगों को पलक झपकते ही जानकारियां उपलब्ध कराई जा सकती हैं.

पत्रकारिता का उद्देश्य लोगों को सूचना देना शिक्षित करना और मनोरंजन करना है. इन उद्देश्यों की व्याख्या करें तो जनसामान्य तक किसी भी घटना गतिविधि विषय वस्तु आदि की सूचना देना पत्रकारिता का प्रथम उद्देश्य है. पत्रकारिता की एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य लोगों को शिक्षित करना, शिक्षित करने से तात्पर्य यह है कि लोगों को सामान्य ज्ञान का बोध कराना जिससे वह अनभिज्ञ है. पत्रकारिता का एक उद्देश्य जनता का मनोरंजन करना भी है. मनोरंजन का मतलब स्वस्थ मनोरंजन से है. आज के इंटरनेट के दौर में पत्रकारिता की सबसे बड़ी चुनौती अपने पाठकों को पहचान कर समाचारों को विश्वसनीय बनाना है. एक पत्रकार को इस बात की समझ होनी चाहिए कि उसका पाठक या दर्शक या पढ़ना या देखना चाहते हैं. अगर इस चीज को ध्यान में रखकर जिम्मेदारी के साथ समाचार प्रस्तुत किया जाए तो वह पाठकों और दर्शकों के दिलों में जगह बनाने में कामयाब हो जाता है.

'माध्यम ही संदेश है' नामक पुस्तक में प्रसिद्ध मीडिया विशेषज्ञ *मार्शल मैक्लुहान* ने लिखा है कि 'सूचना से अधिक महत्वपूर्ण सूचना तंत्र है' और यह बात सही भी है कि सूचना में शक्ति होती है और पत्रकारिता तो सूचनाओं का जाल है, जिसमें प्रकार पत्रकार सूचना देने के साथ-साथ सामान्य जनता को दिशानिर्देश भी देता है. आने वाला समय न्यू मीडिया और प्रौद्योगिकी का है जिसमें पत्रकारिता के उद्देश्यों और उत्तरदायित्वों को पूरा करने की संभावना बढ़ जाती है. पत्रकारिता का काम हमेशा से ही जनपथ के मुद्दे को राजपथ तक पहुंचाने का रहा है और उम्मीद है की पत्रकारिता अपने यह काम निर्बाध रूप से आगे भी करती रहेगी.


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