क्राइम रिपोर्टिंग

इंद्र वशिष्ठ।

अपराध की खबर सिर्फ किसी वारदात की सूचना भर नहीं होती है अपराध की खबर लोगों को सतर्क और जागरूक करती है। अपराधी वारदात के कौन से तरीके अपना कर लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं इसकी जानकारी अपराध के समाचारों से मिलती है। लोग यदि अपराध के समाचार में दी गई जानकारी पर ध्‍यान दें तो वह अपराधियों के चंगुल के आने से खुद को काफी हद तक बचा सकते हैं। लेकिन अफसोस की बात है कि लोग ऐसी खबरों को गंभीरता से नहीं लेते और अपराधियों के चंगुल में फंस जाते हैं। इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ठगी/जालसाजी/धोखाधड़ी के समाचार निरंतर आते रहते हैं। इसके बावजूद ऐसे अपराध के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इससे पता चलता है कि अपराध के समाचारों से लोग कुछ सबक नहीं लेते या फिर अपने लालच के कारण ठगों के जाल में फंसते जाते हैं।
अपराध रिपोर्टिंग सिर्फ वारदात की सूचना तक ही सीमित नहीं है। इसके माध्‍यम से लोगों को कानून और अधिकारों के बारे में भी जानकारी देकर जागरूक किया जाता है। अपराध पीडि़त के क्‍या-क्‍या अधिकार और पुलिस का क्‍या कर्तव्‍य है। यह भी क्राइम रिपोर्टिंग से बताया जाता है। क्राइम रिपोर्टिंग गंभीर और जिम्‍मेदारी से किया जाना वाला कार्य है। लेकिन न्‍यूज चैनलों के आने के बाद से इसमें काफी परेशानियां आ गई है।
सबसे पहले दिखाने की अंधी दौड़ में गलत खबरें तक दे दी जाती हैं। बिना यह समझे कि गलत खबर से किसी पर क्‍या बीतेगी। कुछ समय पहले एक चैनल ने दिल्‍ली की टीचर उमा खुराना के बारे में यह खबर चला दी कि वह छात्राओं से देह व्‍यापार कराती है। पुलिस ने भी बिना तफ्तीश किए तुरन्‍त उमा को जेल में डाल दिया। बाद में तहकीकत में पुलिस ने पाया कि उमा बेकसूर है और उसके बारे में दिखाई खबर फर्जी है। कुछ साल पहले की बात है एक सुबह न्‍यूज चैनलों ने खबर दी कि नोएडा में स्‍कूल बस दुर्घटना में पांच बच्‍चों की मौत हो गई। ज‍बकि उस दुर्घटना में किसी की मौत नहीं हुई थी।
एक अन्‍य मामले में तो सनसनीखेज खबर दिखाने के चक्‍कर ने दिल्‍ली में एक युवक की जान ले ली। खबरों को सनसनीखेज तरीके से पेश करने वाले एक चैनल ने खबर चला दी कि इस युवक ने अपनी रिश्‍तेदार लड़की से बलात्‍कार किया है। इस खबर के कारण शादीशुदा इस युवक ने आत्‍महत्‍या कर ली। गैर जिम्‍मेदाराना और संवेदनहीन क्राइम रिपोर्टिंग के ये तो कुछ उदाहरण हैं। इसके अलावा भी यह देखा गया है कि सबसे पहले दिखाने की होड़ में गलत या एकतरफा खबर दिखा दी जाती है। पुलिस के दावे को ही प्रमुखता दी जाती है। चाहे बाद में वह दावा कोर्ट में खोखला क्‍यों न निकले।
क्राइम रिपोर्टिंग का स्‍तर गिरता जा रहा है इसका प्रमुख कारण है पुलिस अफसरों पर निर्भरता। यह स्थिति खतरनाक है क्‍योंकि ऐसे में पुलिस अपने मन मुताबिक रिपोर्टरों का इस्‍तेमाल करती है। इसके लिए पूरी तरह से हम सभी जिम्‍मेदार है। क्राइम रिपोर्टिंग का मतलब है कि पुलिस के दावे की भी पड़ताल कर सच्‍चाई का पता लगाना है। अपराध पीडि़‍त ही नहीं, आरोपी का भी पक्ष लेकर सभी पहलू/तथ्‍य समेत निष्‍पक्ष खबर दी जाए। सिर्फ पुलिस के दावे के आधार पर ही किसी को मुजरिम करार देना क्राइम रिपोर्टिंग नहीं होती।
आरोपी मुजरिम है या नहीं यह कोर्ट ही तय कर सकती है। अपराध पीडि़त, पुलिस और आरोपी की बात को पूरी गंभीरता से जांच कर ही, सही तथ्‍य अपनी रिपोर्ट में देने चाहिए। अक्‍सर पाया गया कि पुलिस डकैती को लूट में तथा लूट और स्‍नैचिंग को चोरी में दर्ज करती है। पुलिस जब डकैती या लूट के मामले सुलझाने के दावे करती है। क्राइम रिपोर्टर को तब यह पड़ताल करनी चाहिए कि पुलिस ने जो मामले सुलझाने का दावा किया है क्‍या वह सभी मामले पुलिस ने वारदात के बाद दर्ज किए थे या नहीं। और दर्ज हैं तो क्‍या वह आईपीसी की सही धारा में दर्ज किए गए। इसके लिए क्राइम रिपोर्टर को आईपीसी की प्रमुख धाराओं की जानकारी भी होनी चाहिए।
आंकड़ों के द्वारा अपराध कम दिखाने के लिए पुलिस अपराध के सभी मामलों को या तो दर्ज नहीं करती या फिर उनको हल्‍की धारा में दर्ज करती है। पुलिस ने मामला सही धारा में दर्ज किया है या नहीं इसका पता अपराध पीडि़त से बात करके लगाया जा सकता है। पुलिस की भूमिका ….. अपराध करने वाला अगर कोई बड़ा आदमी यानी पैसे वाला या सत्‍ताधारी दल से जुड़ा हुआ है आमतौर पर तो पुलिस उसके बारे में जानकारी नहीं देती। अपराध में आम आदमी शामिल है तो उसके पूरे परिवार तक के बारे में ढि़ढोरा पीट कर बताती है। देश की राजधानी में क्राइम रिपोर्टिंग करना एक चुनौती भरा कार्य है। क्‍योंकि यहां पर जबरदस्‍त प्रतिस्‍पर्धा के बीच कार्य करना पड़ता है। किसी भी बड़ी वारदात पर पूरे देश की नजर रहती है। ऐसे में क्राइम रिपोर्टर पर खास खबर देने का दबाव रहता है। चुनौती, दबाव, तनाव और प्रतिस्‍पर्धा के बावजूद अच्‍छी बात यह है कि यहां अच्‍छा काय्र करने वाले क्राइम रिपोर्टर की पहचान का दायरा बड़ा हो जाता है जो उसे और बेहतर कार्य करने के लिए प्रोत्‍साहित करता है।
कुछ बातें जो क्राइम रिपोर्टर को मालूम होनी ही चाहिए
  • संज्ञेय और असंज्ञेय अपराध कौन सा होता है।
  • जमानती और गैर जमानती अपराध कौन सा होता है।
  • एफआईआर, रोजनामचा, डी डी इंट्र, तहरीर, रूक्‍का, कलंदरा, विसरा और पंचानामा क्‍या होता है।
  • आईपीसी, सीआरपीसी की मुख्‍य धाराओं के साथ ही पुलिस एक्‍ट के बारे में जानकारी होनी चाहिए।
  • पुलिस के काम काज में उर्दू के शब्‍दों का भी इस्‍तेमाल होता है। इसलिए उनके अर्थ मालूम होने चाहिए।
  • हिरासत और गिरफ्तारी में अंतर की जानकारी होनी चाहिए।
  • पुलिस की कार्य प्रणाली खास कर तफ्तीश आदि के बारे में जानकारी होने से क्राइम रिपोर्टिंग बेहतर होती है।
क्राइम रिपोर्टिंग में 24 घंटे सतर्क रहना पड़ता है। अपराध की सूचना मिलते ही मौका-ए-वारदात पर सबसे पहले पहुंचने का जुनून रिपोर्टर में रहता है। जो उसे चुस्‍त और चौकन्‍ना रखता है।
साभार : प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया के प्रकाशन ” The Scribes World सच पत्रकारिता का”. लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया के सदस्य हैं.

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